hindisamay head


अ+ अ-

कविता

तुम हो बादल, तुम बरस रही हो

सुरेन्द्र स्निग्ध


नवंबर की इस सर्द दोपहरी में
मेघों से आच्छादित है आकाश

लबालब भरा हुआ है विस्तृत नभ
शहद के मधुछत्ते जैसा
अब छलका
कि तब छलका
मेरे मन के आकाश में
बरस जाने को व्याकुल
भारी बादलों की तरह
उमड़ घुमड़ रही हो तुम

तुम हो बादल
तुम बरस रही हो
भीग रहा है मेरा तन-मन
भीग रही है
नवंबर की सर्द दोपहरी।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में सुरेन्द्र स्निग्ध की रचनाएँ